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| सर्वदेहानुगाः स्तब्धा ज्वरं कुर्वन्ति सन्ततम्| | | सर्वदेहानुगाः स्तब्धा ज्वरं कुर्वन्ति सन्ततम्| |
| + | |
| दशाहं द्वादशाहं वा सप्ताहं वा सुदुःसहः||५४|| | | दशाहं द्वादशाहं वा सप्ताहं वा सुदुःसहः||५४|| |
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| स शीघ्रं शीघ्रकारित्वात् प्रशमं याति हन्ति वा| | | स शीघ्रं शीघ्रकारित्वात् प्रशमं याति हन्ति वा| |
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| कालदूष्यप्रकृतिभिर्दोषस्तुल्यो हि सन्ततम्||५५|| | | कालदूष्यप्रकृतिभिर्दोषस्तुल्यो हि सन्ततम्||५५|| |
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| निष्प्रत्यनीकः कुरुते तस्माज्ज्ञेयः सुदुःसहः| | | निष्प्रत्यनीकः कुरुते तस्माज्ज्ञेयः सुदुःसहः| |
| + | |
| यथा धातूंस्तथा मूत्रं पुरीषं चानिलादयः||५६|| | | यथा धातूंस्तथा मूत्रं पुरीषं चानिलादयः||५६|| |
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| युगपच्चानुपद्यन्ते नियमात् सन्तते ज्वरे| | | युगपच्चानुपद्यन्ते नियमात् सन्तते ज्वरे| |
| + | |
| स शुद्ध्या वाऽप्यशुद्ध्या वा रसादीनामशेषतः||५७|| | | स शुद्ध्या वाऽप्यशुद्ध्या वा रसादीनामशेषतः||५७|| |
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| सप्ताहादिषु कालेषु प्रशमं याति हन्ति वा| | | सप्ताहादिषु कालेषु प्रशमं याति हन्ति वा| |
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| यदा तु नातिशुध्यन्ति न वा शुध्यन्ति सर्वशः||५८|| | | यदा तु नातिशुध्यन्ति न वा शुध्यन्ति सर्वशः||५८|| |
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| द्वादशैते समुद्दिष्टाः सन्ततस्याश्रयास्तदा| | | द्वादशैते समुद्दिष्टाः सन्ततस्याश्रयास्तदा| |
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| विसर्गं द्वादशे कृत्वा दिवसेऽव्यक्तलक्षणम्||५९|| | | विसर्गं द्वादशे कृत्वा दिवसेऽव्यक्तलक्षणम्||५९|| |
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| दुर्लभोपशमः कालं दीर्घमप्यनुवर्तते| | | दुर्लभोपशमः कालं दीर्घमप्यनुवर्तते| |
| + | |
| इति बुद्ध्वा ज्वरं वैद्य उपक्रामेत्तु सन्ततम् ||६०|| | | इति बुद्ध्वा ज्वरं वैद्य उपक्रामेत्तु सन्ततम् ||६०|| |
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| sarvadēhānugāḥ stabdhā jwaraṁ kurvanti santatam| | | sarvadēhānugāḥ stabdhā jwaraṁ kurvanti santatam| |
| + | |
| daśāhaṁ dvādaśāhaṁ vā saptāhaṁ vā suduḥsahaḥ||54|| | | daśāhaṁ dvādaśāhaṁ vā saptāhaṁ vā suduḥsahaḥ||54|| |
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| sa śīghraṁ śīghrakāritvāt praśamaṁ yāti hanti vā| | | sa śīghraṁ śīghrakāritvāt praśamaṁ yāti hanti vā| |
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| kāladūṣyaprakr̥tibhirdōṣastulyō hi santatam||55|| | | kāladūṣyaprakr̥tibhirdōṣastulyō hi santatam||55|| |
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| niṣpratyanīkaḥ kurutē tasmājjñēyaḥ suduḥsahaḥ| | | niṣpratyanīkaḥ kurutē tasmājjñēyaḥ suduḥsahaḥ| |
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| yathā dhātūṁstathā mūtraṁ purīṣaṁ cānilādayaḥ||56|| | | yathā dhātūṁstathā mūtraṁ purīṣaṁ cānilādayaḥ||56|| |
| | | |
| yugapaccānupadyantē niyamāt santatē jvarē| | | yugapaccānupadyantē niyamāt santatē jvarē| |
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| sa śuddhyā vā'pyaśuddhyā vā rasādīnāmaśēṣataḥ||57|| | | sa śuddhyā vā'pyaśuddhyā vā rasādīnāmaśēṣataḥ||57|| |
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| saptāhādiṣu kālēṣu praśamaṁ yāti hanti vā| | | saptāhādiṣu kālēṣu praśamaṁ yāti hanti vā| |
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| yadā tu nātiśudhyanti na vā śudhyanti sarvaśaḥ||58|| | | yadā tu nātiśudhyanti na vā śudhyanti sarvaśaḥ||58|| |
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| dvādaśaitē samuddiṣṭāḥ santatasyāśrayāstadā| | | dvādaśaitē samuddiṣṭāḥ santatasyāśrayāstadā| |
| + | |
| visargaṁ dvādaśē kr̥tvā divasē'vyaktalakṣaṇam||59|| | | visargaṁ dvādaśē kr̥tvā divasē'vyaktalakṣaṇam||59|| |
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| durlabhōpaśamaḥ kālaṁ dīrghamapyanuvartatē| | | durlabhōpaśamaḥ kālaṁ dīrghamapyanuvartatē| |
| + | |
| iti buddhvā jwaraṁ vaidya upakrāmēttu santatam ||60|| | | iti buddhvā jwaraṁ vaidya upakrāmēttu santatam ||60|| |
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| sarvadehAnugAH stabdhA jwaraM kurvanti santatam| | | sarvadehAnugAH stabdhA jwaraM kurvanti santatam| |
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| dashAhaM dvAdashAhaM vA saptAhaM vA suduHsahaH||54|| | | dashAhaM dvAdashAhaM vA saptAhaM vA suduHsahaH||54|| |
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| sa shIghraM shIghrakAritvAt prashamaM yAti hanti vA| | | sa shIghraM shIghrakAritvAt prashamaM yAti hanti vA| |
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| kAladUShyaprakRutibhirdoShastulyo hi santatam||55|| | | kAladUShyaprakRutibhirdoShastulyo hi santatam||55|| |
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| niShpratyanIkaH kurute tasmAjj~jeyaH suduHsahaH| | | niShpratyanIkaH kurute tasmAjj~jeyaH suduHsahaH| |
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| yathA dhAtUMstathA mUtraM purIShaM cAnilAdayaH||56|| | | yathA dhAtUMstathA mUtraM purIShaM cAnilAdayaH||56|| |
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| yugapaccAnupadyante niyamAt santate jvare| | | yugapaccAnupadyante niyamAt santate jvare| |
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| sa shuddhyA vA~apyashuddhyA vA rasAdInAmasheShataH||57|| | | sa shuddhyA vA~apyashuddhyA vA rasAdInAmasheShataH||57|| |
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| saptAhAdiShu kAleShu prashamaM yAti hanti vA| | | saptAhAdiShu kAleShu prashamaM yAti hanti vA| |
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| yadA tu nAtishudhyanti na vA shudhyanti sarvashaH||58|| | | yadA tu nAtishudhyanti na vA shudhyanti sarvashaH||58|| |
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| dvAdashaite samuddiShTAH santatasyAshrayAstadA| | | dvAdashaite samuddiShTAH santatasyAshrayAstadA| |
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| visargaM dvAdashe kRutvA divase~avyaktalakShaNam||59|| | | visargaM dvAdashe kRutvA divase~avyaktalakShaNam||59|| |
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| durlabhopashamaH kAlaM dIrghamapyanuvartate| | | durlabhopashamaH kAlaM dIrghamapyanuvartate| |
| + | |
| iti buddhvA jwaraM vaidya upakrAmettu santatam ||60|| | | iti buddhvA jwaraM vaidya upakrAmettu santatam ||60|| |
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| सप्रत्यनीकः कुरुते कालवृद्धिक्षयात्मकम्| | | सप्रत्यनीकः कुरुते कालवृद्धिक्षयात्मकम्| |
| + | |
| अहोरात्रे सततको द्वौ कालावनुवर्तते||६२|| | | अहोरात्रे सततको द्वौ कालावनुवर्तते||६२|| |
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| sapratyanīkaḥ kurutē kālavr̥ddhikṣayātmakam| | | sapratyanīkaḥ kurutē kālavr̥ddhikṣayātmakam| |
| + | |
| ahōrātrē satatakō dvau kālāvanuvartatē||62|| | | ahōrātrē satatakō dvau kālāvanuvartatē||62|| |
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| sapratyanIkaH kurute kAlavRuddhikShayAtmakam| | | sapratyanIkaH kurute kAlavRuddhikShayAtmakam| |
| + | |
| ahorAtre satatako dvau kAlAvanuvartate||62|| | | ahorAtre satatako dvau kAlAvanuvartate||62|| |
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| कालप्रकृतिदूष्याणां प्राप्यैवान्यतमाद्बलम्| | | कालप्रकृतिदूष्याणां प्राप्यैवान्यतमाद्बलम्| |
| + | |
| अन्येद्युष्कं ज्वरं दोषो रुद्ध्वा मेदोवहाः सिराः||६३|| | | अन्येद्युष्कं ज्वरं दोषो रुद्ध्वा मेदोवहाः सिराः||६३|| |
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| kālaprakr̥tidūṣyāṇāṁ prāpyaivānyatamādbalam| | | kālaprakr̥tidūṣyāṇāṁ prāpyaivānyatamādbalam| |
| + | |
| anyēdyuṣkaṁ jwaraṁ dōṣō ruddhvā mēdōvahāḥ sirāḥ||63|| | | anyēdyuṣkaṁ jwaraṁ dōṣō ruddhvā mēdōvahāḥ sirāḥ||63|| |
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| kAlaprakRutidUShyANAM prApyaivAnyatamAdbalam| | | kAlaprakRutidUShyANAM prApyaivAnyatamAdbalam| |
| + | |
| anyedyuShkaM jwaraM doSho ruddhvA medovahAH sirAH||63|| | | anyedyuShkaM jwaraM doSho ruddhvA medovahAH sirAH||63|| |
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| गतिर्द्व्येकान्तराऽन्येद्युर्दोषस्योक्ताऽन्यथा परैः| | | गतिर्द्व्येकान्तराऽन्येद्युर्दोषस्योक्ताऽन्यथा परैः| |
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| अन्येद्युष्कं ज्वरं कुर्यादपि संश्रित्य शोणितम्||६५|| | | अन्येद्युष्कं ज्वरं कुर्यादपि संश्रित्य शोणितम्||६५|| |
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| मांसस्रोतांस्यनुगतो जनयेत्तु तृतीयकम्| | | मांसस्रोतांस्यनुगतो जनयेत्तु तृतीयकम्| |
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| संश्रितो मेदसो मार्गं दोषश्चापि चतुर्थकम् ||६६|| | | संश्रितो मेदसो मार्गं दोषश्चापि चतुर्थकम् ||६६|| |
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| अन्येद्युष्कः प्रतिदिनं दिनं हित्वा तृतीयकः| | | अन्येद्युष्कः प्रतिदिनं दिनं हित्वा तृतीयकः| |
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| दिनद्वयं यो विश्रम्य प्रत्येति स चतुर्थकः||६७|| | | दिनद्वयं यो विश्रम्य प्रत्येति स चतुर्थकः||६७|| |
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| gatirdvyēkāntarā'nyēdyurdōṣasyōktā'nyathā paraiḥ| | | gatirdvyēkāntarā'nyēdyurdōṣasyōktā'nyathā paraiḥ| |
| + | |
| anyēdyuṣkaṁ jwaraṁ kuryādapi saṁśritya śōṇitam||65|| | | anyēdyuṣkaṁ jwaraṁ kuryādapi saṁśritya śōṇitam||65|| |
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| māṁsasrōtāṁsyanugatō janayēttu tr̥tīyakam| | | māṁsasrōtāṁsyanugatō janayēttu tr̥tīyakam| |
| + | |
| saṁśritō mēdasō mārgaṁ dōṣaścāpi caturthakam ||66|| | | saṁśritō mēdasō mārgaṁ dōṣaścāpi caturthakam ||66|| |
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| anyēdyuṣkaḥ pratidinaṁ dinaṁ hitvā tr̥tīyakaḥ| | | anyēdyuṣkaḥ pratidinaṁ dinaṁ hitvā tr̥tīyakaḥ| |
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| dinadvayaṁ yō viśramya pratyēti sa caturthakaḥ||67|| | | dinadvayaṁ yō viśramya pratyēti sa caturthakaḥ||67|| |
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| gatirdvyekAntarA~anyedyurdoShasyoktA~anyathA paraiH| | | gatirdvyekAntarA~anyedyurdoShasyoktA~anyathA paraiH| |
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| anyedyuShkaM jwaraM kuryAdapi saMshritya shoNitam||65|| | | anyedyuShkaM jwaraM kuryAdapi saMshritya shoNitam||65|| |
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| mAMsasrotAMsyanugato janayettu tRutIyakam| | | mAMsasrotAMsyanugato janayettu tRutIyakam| |
| + | |
| saMshrito medaso mArgaM doShashcApi caturthakam ||66|| | | saMshrito medaso mArgaM doShashcApi caturthakam ||66|| |
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| anyedyuShkaH pratidinaM dinaM hitvA tRutIyakaH| | | anyedyuShkaH pratidinaM dinaM hitvA tRutIyakaH| |
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| dinadvayaM yo vishramya pratyeti sa caturthakaH||67|| | | dinadvayaM yo vishramya pratyeti sa caturthakaH||67|| |
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