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| tantrasyāsyāṣṭau sthānāni ; tadyathā- ślōkanidānavimānaśārīrēndriyacikitsitakalpasiddhisthānāni| | | tantrasyāsyāṣṭau sthānāni ; tadyathā- ślōkanidānavimānaśārīrēndriyacikitsitakalpasiddhisthānāni| |
| tatra triṁśadadhyāyakaṁ ślōkasthānam, aṣṭāṣṭādhyāyakāni nidānavimānaśārīrasthānāni,dvādaśakamindriyāṇāṁ, triṁśakaṁ cikitsitānāṁ, dvādaśakē kalpasiddhisthānē bhavataḥ||33|| | | tatra triṁśadadhyāyakaṁ ślōkasthānam, aṣṭāṣṭādhyāyakāni nidānavimānaśārīrasthānāni,dvādaśakamindriyāṇāṁ, triṁśakaṁ cikitsitānāṁ, dvādaśakē kalpasiddhisthānē bhavataḥ||33|| |
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| tantrasyAsyAShTau sthAnAni ; tadyathA- shlokanidAnavimAnashArIrendriyacikitsitakalpasiddhisthAnAni| | | tantrasyAsyAShTau sthAnAni ; tadyathA- shlokanidAnavimAnashArIrendriyacikitsitakalpasiddhisthAnAni| |
| tatra triMshadadhyAyakaM shlokasthAnam, aShTAShTAdhyAyakAni nidAnavimAnashArIrasthAnAni,dvAdashakamindriyANAM, triMshakaM cikitsitAnAM, dvAdashake kalpasiddhisthAne bhavataH||33|| | | tatra triMshadadhyAyakaM shlokasthAnam, aShTAShTAdhyAyakAni nidAnavimAnashArIrasthAnAni,dvAdashakamindriyANAM, triMshakaM cikitsitAnAM, dvAdashake kalpasiddhisthAne bhavataH||33|| |
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| The following are the eight sections that form Charaka Samhita:- | | The following are the eight sections that form Charaka Samhita:- |
| 1. Shloka (or Sutra) sthana or the section on general principles having thirty chapters; | | 1. Shloka (or Sutra) sthana or the section on general principles having thirty chapters; |
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| 7. Kalpa sthana or the section on pharmaceuticals having twelve chapters; and; | | 7. Kalpa sthana or the section on pharmaceuticals having twelve chapters; and; |
| 8. Siddhi sthana or the section on the successful administration of [[Panchakarma]] (five elimination therapies) having twelve chapters; [33] | | 8. Siddhi sthana or the section on the successful administration of [[Panchakarma]] (five elimination therapies) having twelve chapters; [33] |
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| भवति चात्र- | | भवति चात्र- |
| द्वे त्रिंशके द्वादशकं त्रयं च त्रीण्यष्टकान्येषु समाप्तिरुक्ता| | | द्वे त्रिंशके द्वादशकं त्रयं च त्रीण्यष्टकान्येषु समाप्तिरुक्ता| |
| श्लोकौषधारिष्टविकल्पसिद्धिनिदानमानाश्रयसञ्ज्ञकेषु||३४|| | | श्लोकौषधारिष्टविकल्पसिद्धिनिदानमानाश्रयसञ्ज्ञकेषु||३४|| |
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| bhavati cātra- | | bhavati cātra- |
| dvē triṁśakē dvādaśakaṁ trayaṁ ca trīṇyaṣṭakānyēṣu samāptiruktā| | | dvē triṁśakē dvādaśakaṁ trayaṁ ca trīṇyaṣṭakānyēṣu samāptiruktā| |
| ślōkauṣadhāriṣṭavikalpasiddhinidānamānāśrayasañjñakēṣu||34|| | | ślōkauṣadhāriṣṭavikalpasiddhinidānamānāśrayasañjñakēṣu||34|| |
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| bhavati cAtra- | | bhavati cAtra- |
| dve triMshake dvAdashakaM trayaM ca trINyaShTakAnyeShu samAptiruktA| | | dve triMshake dvAdashakaM trayaM ca trINyaShTakAnyeShu samAptiruktA| |
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| Thus it can be said that Sutra(shloka) and Chikitsa(aushadha) sections have thirty chapters each, Indriya(arishta), Kalpa(vikalpa) and Siddhi sections have twelve chapters each, and Nidana, Vimana, and Sharira(ashraya) sections have eight chapters each. This is the entire treatise. [34] | | Thus it can be said that Sutra(shloka) and Chikitsa(aushadha) sections have thirty chapters each, Indriya(arishta), Kalpa(vikalpa) and Siddhi sections have twelve chapters each, and Nidana, Vimana, and Sharira(ashraya) sections have eight chapters each. This is the entire treatise. [34] |
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| स्वे स्वे स्थाने यथास्वं च स्थानार्थ उपदेक्ष्यते| | | स्वे स्वे स्थाने यथास्वं च स्थानार्थ उपदेक्ष्यते| |
| सविंशमध्यायशतं शृणु नामक्रमागतम्||३५|| | | सविंशमध्यायशतं शृणु नामक्रमागतम्||३५|| |
| + | |
| svē svē sthānē yathāsvaṁ ca sthānārtha upadēkṣyatē| | | svē svē sthānē yathāsvaṁ ca sthānārtha upadēkṣyatē| |
| saviṁśamadhyāyaśataṁ śr̥ṇu nāmakramāgatam||35|| | | saviṁśamadhyāyaśataṁ śr̥ṇu nāmakramāgatam||35|| |
| + | |
| sve sve sthAne yathAsvaM ca sthAnArtha upadekShyate| | | sve sve sthAne yathAsvaM ca sthAnArtha upadekShyate| |
| saviMshamadhyAyashataM shRuNu nAmakramAgatam||35|| | | saviMshamadhyAyashataM shRuNu nAmakramAgatam||35|| |
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| The objectives of the sequence of the various sections within the treatise, and the names of the one hundred twenty chapters shall be described as follows: [35] | | The objectives of the sequence of the various sections within the treatise, and the names of the one hundred twenty chapters shall be described as follows: [35] |
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| दीर्घञ्जीवोऽप्यपामार्गतण्डुलारग्वधादिकौ| | | दीर्घञ्जीवोऽप्यपामार्गतण्डुलारग्वधादिकौ| |
| षड्विरेकाश्रयश्चेति चतुष्को भेषजाश्रयः||३६|| | | षड्विरेकाश्रयश्चेति चतुष्को भेषजाश्रयः||३६|| |
| + | |
| मात्रातस्याशितीयौ च नवेगान्धारणं तथा| | | मात्रातस्याशितीयौ च नवेगान्धारणं तथा| |
− | इन्द्रियोपक्रमश्चेति चत्वारः स्वास्थ्यवृत्तिकाः ||३७|| | + | इन्द्रियोपक्रमश्चेति चत्वारः स्वास्थ्यवृत्तिकाः ||३७|| |
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| खुड्डाकश्च चतुष्पादो महांस्तिस्रैषणस्तथा| | | खुड्डाकश्च चतुष्पादो महांस्तिस्रैषणस्तथा| |
| सह वातकलाख्येन विद्यान्नैर्देशिकान् बुधः||३८|| | | सह वातकलाख्येन विद्यान्नैर्देशिकान् बुधः||३८|| |
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| स्नेहनस्वेदनाध्यायावुभौ यश्चोपकल्पनः| | | स्नेहनस्वेदनाध्यायावुभौ यश्चोपकल्पनः| |
| चिकित्साप्राभृतश्चैव सर्व एव प्रकल्पनाः||३९|| | | चिकित्साप्राभृतश्चैव सर्व एव प्रकल्पनाः||३९|| |
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| कियन्तःशिरसीयश्च त्रिशोफाष्टोदरादिकौ| | | कियन्तःशिरसीयश्च त्रिशोफाष्टोदरादिकौ| |
| रोगाध्यायो महांश्चैव रोगाध्यायचतुष्टयम्||४०|| | | रोगाध्यायो महांश्चैव रोगाध्यायचतुष्टयम्||४०|| |
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| अष्टौनिन्दितसङ्ख्यातस्तथा लङ्घनतर्पणे| | | अष्टौनिन्दितसङ्ख्यातस्तथा लङ्घनतर्पणे| |
| विधिशोणितिकश्चैव व्याख्यातास्तत्र योजनाः||४१|| | | विधिशोणितिकश्चैव व्याख्यातास्तत्र योजनाः||४१|| |
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| यज्जःपुरुषसङ्ख्यातो भद्रकाप्यान्नपानिकौ| | | यज्जःपुरुषसङ्ख्यातो भद्रकाप्यान्नपानिकौ| |
| विविधाशितपीतीयश्चत्वारोऽन्नविनिश्चयाः||४२|| | | विविधाशितपीतीयश्चत्वारोऽन्नविनिश्चयाः||४२|| |
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| दशप्राणायतनिकस्तथाऽर्थेदशमूलिकः| | | दशप्राणायतनिकस्तथाऽर्थेदशमूलिकः| |
| द्वावेतौ प्राणदेहार्थौ प्रोक्तौ वैद्यगुणाश्रयौ||४३|| | | द्वावेतौ प्राणदेहार्थौ प्रोक्तौ वैद्यगुणाश्रयौ||४३|| |
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| औषधस्वस्थनिर्देशकल्पनारोगयोजनाः| | | औषधस्वस्थनिर्देशकल्पनारोगयोजनाः| |
| चतुष्काः षट् क्रमेणोक्ताः सप्तमश्चान्नपानिकः||४४|| | | चतुष्काः षट् क्रमेणोक्ताः सप्तमश्चान्नपानिकः||४४|| |
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| द्वौ चान्त्यौ सङ्ग्रहाध्यायाविति त्रिंशकमर्थवत्| | | द्वौ चान्त्यौ सङ्ग्रहाध्यायाविति त्रिंशकमर्थवत्| |
− | श्लोकस्थानं समुद्दिष्टं तन्त्रस्यास्य शिरः शुभम् ||४५|| | + | श्लोकस्थानं समुद्दिष्टं तन्त्रस्यास्य शिरः शुभम् ||४५|| |
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| चतुष्काणां महार्थानां स्थानेऽस्मिन् सङ्ग्रहः कृतः| | | चतुष्काणां महार्थानां स्थानेऽस्मिन् सङ्ग्रहः कृतः| |
| श्लोकार्थः सङ्ग्रहार्थश्च श्लोकस्थानमतः स्मृतम्||४६|| | | श्लोकार्थः सङ्ग्रहार्थश्च श्लोकस्थानमतः स्मृतम्||४६|| |
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| ज्वराणां रक्तपित्तस्य गुल्मानां मेहकुष्ठयोः| | | ज्वराणां रक्तपित्तस्य गुल्मानां मेहकुष्ठयोः| |
| शोषोन्मादनिदाने च स्यादपस्मारिणां च यत्||४७|| | | शोषोन्मादनिदाने च स्यादपस्मारिणां च यत्||४७|| |
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| इत्यध्यायाष्टकमिदं निदानस्थानमुच्यते| | | इत्यध्यायाष्टकमिदं निदानस्थानमुच्यते| |
| रसेषु त्रिविधे कुक्षौ ध्वंसे जनपदस्य च||४८|| | | रसेषु त्रिविधे कुक्षौ ध्वंसे जनपदस्य च||४८|| |
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| त्रिविधे रोगविज्ञाने स्रोतःस्वपि च वर्तने| | | त्रिविधे रोगविज्ञाने स्रोतःस्वपि च वर्तने| |
| रोगानीके व्याधिरूपे रोगाणां च भिषग्जिते||४९|| | | रोगानीके व्याधिरूपे रोगाणां च भिषग्जिते||४९|| |
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| अष्टौ विमानान्युक्तानि मानार्थानि महर्षिणा| | | अष्टौ विमानान्युक्तानि मानार्थानि महर्षिणा| |
| कतिधापुरुषीयं च गोत्रेणातुल्यमेव च||५०|| | | कतिधापुरुषीयं च गोत्रेणातुल्यमेव च||५०|| |
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| खुड्डिका महती चैव गर्भावक्रान्तिरुच्यते| | | खुड्डिका महती चैव गर्भावक्रान्तिरुच्यते| |
| पुरुषस्य शरीरस्य विचयौ द्वौ विनिश्चितौ||५१|| | | पुरुषस्य शरीरस्य विचयौ द्वौ विनिश्चितौ||५१|| |
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| शरीरसङ्ख्या सूत्रं च जातेरष्टममुच्यते | | | शरीरसङ्ख्या सूत्रं च जातेरष्टममुच्यते | |
| इत्युद्दिष्टानि मुनिना शारीराण्यत्रिसूनुना||५२|| | | इत्युद्दिष्टानि मुनिना शारीराण्यत्रिसूनुना||५२|| |
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| वर्णस्वरीयः पुष्पाख्यस्तृतीयः परिमर्शनः| | | वर्णस्वरीयः पुष्पाख्यस्तृतीयः परिमर्शनः| |
| चतुर्थ इन्द्रियानीकः पञ्चमः पूर्वरूपिकः||५३|| | | चतुर्थ इन्द्रियानीकः पञ्चमः पूर्वरूपिकः||५३|| |
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| कतमानिशरीरीयः पन्नरूपोऽप्यवाक्शिराः| | | कतमानिशरीरीयः पन्नरूपोऽप्यवाक्शिराः| |
| यस्यश्यावनिमित्तश्च सद्योमरण एव च||५४|| | | यस्यश्यावनिमित्तश्च सद्योमरण एव च||५४|| |
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| अणुज्योतिरिति ख्यातस्तथा गोमयचूर्णवान्| | | अणुज्योतिरिति ख्यातस्तथा गोमयचूर्णवान्| |
| द्वादशाध्यायकं स्थानमिन्द्रियाणामिति स्मृतम् ||५५|| | | द्वादशाध्यायकं स्थानमिन्द्रियाणामिति स्मृतम् ||५५|| |
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| अभयामलकीयं च प्राणकामीयमेव च| | | अभयामलकीयं च प्राणकामीयमेव च| |
| करप्रचितकं वेदसमुत्थानं रसायनम्||५६|| | | करप्रचितकं वेदसमुत्थानं रसायनम्||५६|| |