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− | तेषांसिद्धिः-तत्रोच्चैर्भाष्यातिभाष्यजानामभ्यङ्गस्वेदोपनाहधूमनस्योपरिभक्तस्नेहपानरसक्षीरादिर्वातहरःसर्वोविधिर्मौनंच(१)| | + | तेषांसिद्धिः-तत्रोच्चैर्भाष्यातिभाष्यजानामभ्यङ्गस्वेदोपनाह |
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− | रथक्षोभातिचङ्क्रमणात्यासनजानांस्नेहस्वेदादिवातहरंकर्मसर्वंनिदानवर्जनंच(२)|
| + | धूमनस्योपरिभक्तस्नेहपानरसक्षीरादिर्वातहरःसर्वोविधिर्मौनंच(१)| |
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− | अजीर्णाध्यशनजानांनिरवशेषतश्छर्दनंरूक्षःस्वेदोलङ्घनीयपाचनीयदीपनीयौषधावचारणंच(३)|
| + | रथक्षोभातिचङ्क्रमणात्यासनजानां |
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| + | स्नेहस्वेदादिवातहरंकर्मसर्वंनिदानवर्जनंच(२)| |
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| + | अजीर्णाध्यशनजानांनिरवशेषतश्छर्दनं |
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| + | रूक्षःस्वेदोलङ्घनीयपाचनीयदीपनीयौषधावचारणंच(३)| |
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| विषमाहिताशनजानांयथास्वंदोषहराःक्रियाः(४)| | | विषमाहिताशनजानांयथास्वंदोषहराःक्रियाः(४)| |
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− | दिवास्वप्नजानांधूमपानलङ्घनवमनशिरोविरेचनव्यायामरूक्षाशनारिष्टदीपनीयौषधोपयोगःप्रघर्षणोन्मर्दनपरिषेचनादिश्चश्लेष्महरःसर्वोविधिः(५)|
| + | दिवास्वप्नजानांधूमपानलङ्घनवमनशिरोविरेचन |
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| + | व्यायामरूक्षाशनारिष्टदीपनीयौषधोपयोगः |
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| + | प्रघर्षणोन्मर्दनपरिषेचनादिश्चश्लेष्महरःसर्वोविधिः(५)| |
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| + | मैथुनजानांजीवनीयसिद्धयोःक्षीरसर्पिषोरुपयोगः, |
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| + | तथावातहराःस्वेदाभ्यङ्गोपनाहावृष्याश्चाहाराः |
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| + | स्नेहाःस्नेहविधयोयापनाबस्तयोऽनुवासनंच; |
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| + | मूत्रवैकृतबस्तिशूलेषुचोत्तरबस्तिर्विदारीगन्धादिगण |
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− | मैथुनजानांजीवनीयसिद्धयोःक्षीरसर्पिषोरुपयोगः,तथावातहराःस्वेदाभ्यङ्गोपनाहावृष्याश्चाहाराःस्नेहाःस्नेहविधयोयापनाबस्तयोऽनुवासनंच;
| + | जीवनीयक्षीरसंसिद्धंतैलंस्यात्||१५|| |
− | मूत्रवैकृतबस्तिशूलेषुचोत्तरबस्तिर्विदारीगन्धादिगणजीवनीयक्षीरसंसिद्धंतैलंस्यात्||१५||
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