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− | अथातोरोगभिषग्जितीयंविमानंव्याख्यास्यामः||१|| इतिहस्माहभगवानात्रेयः||२||
| + | अथातो रोगभिषग्जितीयंविमानं व्याख्यास्यामः||१|| |
| + | |
| + | इति ह स्माह भगवानात्रेयः||२|| |
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− | बुद्धिमानात्मनःकार्यगुरुलाघवंकर्मफलमनुबन्धंदेशकालौचविदित्वायुक्तिदर्शनाद्भिषग्बुभूषुःशास्त्रमेवादितःपरीक्षेत|
| + | बुद्धिमानात्मनः कार्यगुरुलाघवं कर्मफलमनुबन्धं देशकालौ च विदित्वा युक्तिदर्शनाद्भिषग्बुभूषुः शास्त्रमेवादितः परीक्षेत| |
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| + | विविधानि हि शास्त्राणि भिषजां प्रचरन्ति लोके; |
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− | विविधानिहिशास्त्राणिभिषजांप्रचरन्तिलोके;
| + | तत्र यन्मन्येत सुमहद्यशस्विधीरपुरुषासेवितमर्थबहुलमाप्तजनपूजितं त्रिविधशिष्यबुद्धिहितमपगतपुनरुक्तदोषमार्षंसुप्रणीतसूत्रभाष्यसङ्ग्रहक्रमं स्वाधारमनवपतितशब्दमकष्टशब्दं |
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− | तत्रयन्मन्येतसुमहद्यशस्विधीरपुरुषासेवितमर्थबहुलमाप्तजनपूजितंत्रिविधशिष्यबुद्धिहितमपगतपुनरुक्तदोषमार्षंसुप्रणीतसूत्रभाष्यसङ्ग्रहक्रमंस्वाधारमनवपतितशब्दमकष्टशब्दं
| + | पुष्कलाभिधानं क्रमागतार्थमर्थतत्त्वविनिश्चयप्रधानं सङ्गतार्थमसङ्कुलप्रकरणमाशुप्रबोधकं लक्षणवच्चोदाहरणवच्च, |
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− | पुष्कलाभिधानंक्रमागतार्थमर्थतत्त्वविनिश्चयप्रधानंसङ्गतार्थमसङ्कुलप्रकरणमाशुप्रबोधकंलक्षणवच्चोदाहरणवच्च,
| + | तदभिप्रपद्येत शास्त्रम्| |
− | तदभिप्रपद्येतशास्त्रम्|
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− | शास्त्रंह्येवंविधममलइवादित्यस्तमोविधूयप्रकाशयतिसर्वम्||३||
| + | शास्त्रं ह्येवंविधममल इवादित्यस्तमो विधूयप्रकाशयति सर्वम्||३|| |
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− | ततोऽनन्तरमाचार्यंपरीक्षेत;तद्यथा- | + | ततोऽनन्तरमाचार्यंपरीक्षेत; तद्यथा- |
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| पर्यवदातश्रुतं परिदृष्टकर्माणं दक्षं दक्षिणं शुचिं जितहस्तमुपकरणवन्तं सर्वेन्द्रियोपपन्नं प्रकृतिज्ञं प्रतिपत्तिज्ञमनुपस्कृतविद्यमनहङ्कृतमनसूयकमकोपनं क्लेशक्षमंशिष्यवत्सलमध्यापकं ज्ञापनसमर्थंचेत | | पर्यवदातश्रुतं परिदृष्टकर्माणं दक्षं दक्षिणं शुचिं जितहस्तमुपकरणवन्तं सर्वेन्द्रियोपपन्नं प्रकृतिज्ञं प्रतिपत्तिज्ञमनुपस्कृतविद्यमनहङ्कृतमनसूयकमकोपनं क्लेशक्षमंशिष्यवत्सलमध्यापकं ज्ञापनसमर्थंचेत |
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− | तमुपसृत्यारिराधयिषुरुपचरेदग्निवच्चदेववच्चराजवच्चपितृवच्चभर्तृवच्चाप्रमत्तः|
| + | तमुपसृत्यारिराधयिषुरुपचरेदग्निवच्च देववच्च राजवच्च पितृवच्च भर्तृवच्चाप्रमत्तः| |
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− | ततस्तत्प्रसादात्कृत्स्नंशास्त्रमधिगम्यशास्त्रस्यदृढतायामभिधानस्य
| + | ततस्तत्प्रसादात्कृत्स्नं शास्त्रमधिगम्य शास्त्रस्य दृढतायामभिधानस्य |
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− | सौष्ठवेऽर्थस्यविज्ञानेवचनशक्तौचभूयोभूयःप्रयतेतसम्यक्||५||
| + | सौष्ठवेऽर्थस्य विज्ञाने वचनशक्तौ च भूयो भूयः प्रयतेत सम्यक्||५|| |
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| तत्रोपायाननुव्याख्यास्यामः- | | तत्रोपायाननुव्याख्यास्यामः- |
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− | अध्ययनम्,अध्यापनं,तद्विद्यसम्भाषाचेत्युपायाः||६|| | + | अध्ययनम्, अध्यापनं, तद्विद्यसम्भाषाचेत्युपायाः||६|| |
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| तत्रायमध्ययनविधिः- | | तत्रायमध्ययनविधिः- |
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− | कल्यःकृतक्षणःप्रातरुत्थायोपव्यूषंवाकृत्वाऽऽवश्यकमुपस्पृश्योदकं
| + | कल्यः कृतक्षणः प्रातरुत्थायोपव्यूषं वा कृत्वाऽऽवश्यकमुपस्पृश्योदकं |
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− | देवर्षिगोब्राह्मणगुरुवृद्धसिद्धाचार्येभ्यो नमस्कृत्य समेशुचौदेशेसुखोपविष्टोमनःपुरःसराभि: र्वाग्भिःसूत्रमनुक्रामन् | + | देवर्षिगोब्राह्मणगुरुवृद्धसिद्धाचार्येभ्यो नमस्कृत्य समे शुचौ देशे सुखोपविष्टो मनःपुरःसराभिर्वाग्भिः सूत्रमनुक्रामन् |
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− | पुनःपुनरावर्तयेद्बुद्ध्वासम्यगनुप्रविश्यार्थतत्त्वंस्वदोषपरिहारार्थं
| + | पुनः पुनरावर्तयेद्बुद्ध्वा सम्यगनुप्रविश्यार्थतत्त्वं स्वदोषपरिहारार्थं |
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− | परदोषप्रमाणार्थंच;
| + | परदोषप्रमाणार्थं च; |
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− | एवंमध्यन्दिनेऽपराह्णेरात्रौचशश्वदपरिहापयन्नध्ययनमभ्यस्येत्|
| + | एवं मध्यन्दिनेऽपराह्णे रात्रौ च शश्वदपरिहापयन्नध्ययनमभ्यस्येत्| |
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| इत्यध्ययनविधिः||७|| | | इत्यध्ययनविधिः||७|| |
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− | सतथाकुर्यात्||१०||
| + | स तथा कुर्यात्||१०|| |
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